कर दो बच्चों सा-मन
हे ईश कर दो बच्चों-सा मन, निर्मल तन और पावन मन. ऐसी दुनिया ऐसा संसार, जहाँ बहती प्यार की धार. इर्ष्या द्वेष से कोंसो दूर, सारा समय मस्ती में चूर. खेल खिलोनो पर होती कुट्टी, फिर भी नहीं होती छुट्टी. जैसा भी हो लौटा दो बचपन, हे ईश कर दो बच्चों-सा मन. बड़े हुए तो क्या बड़े हुए, कहने को हम सयाने हुए. न निर्मल मन न पावन तन. भयभीत दुनिया आतंकित संसार, जहाँ बहती खून की धार. इर्ष्या द्वेष के सर्प हुए बड़े बड़े, धरा के चंद टुकड़ों के लिए लड़े मरे.