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इजाज़त

खिलखिला कर हँसना तो चाहता हूं, लेकिन मेरे हालात मुझे इजाज़त नहीं देते. रोना भी तो चाहता हूं, लेकिन मेरे आंसू मुझे इजाज़त नहीं देते. आसमान में ऊंची उड़ान तो भरना चाहता हूं, लेकिन टूटे पंख इजाज़त नहीं देते. ज़मीं पर भी तेज़ चलना चाहता हूं, लेकिन रास्तों के अनजाने मोड़ मुझे इजाज़त नहीं देते. अपने पर भरोसा तो बहुत है, लेकिन मंजिल की दूरी इजाज़त नहीं देती. सपने तो देखना चाहता हूं, लेकिन मेरी सूनी आँखे मुझे इजाज़त नहीं देती. जिंदगी के सवालों से उलझना तो चाहता हूं, लेकिन कशमकश मुझे इजाज़त नहीं देती. हवा का रुख़ मोड़ना तो चाहता हूं, लेकिन मुझे ये तूफ़ान इजाज़त नहीं देता.  कोशिश तो करना चाहता हूं, लेकिन नाकामयाबी  का डर इजाज़त नहीं देता.  अपने अन्दर बदलाव तो लाना चाहता हूं, लेकिन अंतर्मन इजाज़त नहीं देता. लक्ष्य को साधना तो चाहता हूं, लेकिन भटकता मन इसकी इजाज़त नहीं देता.    आने वाले कल को देखना तो चाहता हूं, लेकिन मेरा आज इसकी इजाज़त नहीं देता. ख़ुशनुमा लम्हों का इंतज़ार तो करना चाहता हूं, लेकिन मेरी बेसब्री इजाज़त नहीं देती.   अपनी ज़िंदगी को जीना तो चाहता हूं, लेकिन कम होत

मेरी-तुम्हारी चुप...

मैं भी हूँ चुप और तुम भी हो चुप क्यों इतनी ख़ामोशी है गहरायी फिर क्यूँ मैं तुम से और तुम मुझ से मिलने  इतनी दूर तक चली आयीं  दोनों के संग होते हुए, अभी भी है तन्हाई  या पिछली मुलाक़ात की अभी दूर नहीं हुई रुसवाई क्या इस सोच में हो चुप कि पहले वो बोले फिर मैं बोलूं  क्या इस ख़ामोशी में अब हमारी सांसें ही बातें करेंगी  कुछ अपने दिल का हाल बयाँ करेंगी  और कुछ मेरे दिल का सुना करेंगी दिलों की धड़कने आपस में टकराती हैं लहरों की तरह शोर मचाती हैं क्या उसने सुना इनकी आहट को  क्या उनके दिल में चल रही है कुछ हलचल कुछ मेरे दिल में भी है उथल-पुथल क्यों लफ़्ज़ों का कारवां अब थम सा गया है  क्या हुआ ये और क्यों हुआ ये  सवाल अब हम दोनों अपने से ही करते हैं बीच-बीच में चोर निगाहों से इक-दूजे को देखा करतें हैं आख़िर कब तक सांसें-सांसों से बातें करेंगी कब तक धड़कने शोर करेंगी और कब, लफ्ज़ होंठो का साथ छोड़ेंगे चलो अब हम अपनी ख़ामोशी तोड़े इस चुप्पी को अब पीछे छोड़े चलो अब पिछली बातों को छोड़ एक नई शुरुआत करें एक नई शुरुआत करें...