मेरी-तुम्हारी चुप...

मैं भी हूँ चुप और तुम भी हो चुप
क्यों इतनी ख़ामोशी है गहरायी
फिर क्यूँ मैं तुम से और तुम मुझ से
मिलने  इतनी दूर तक चली आयीं 
दोनों के संग होते हुए, अभी भी है तन्हाई 
या पिछली मुलाक़ात की अभी दूर नहीं हुई रुसवाई
क्या इस सोच में हो चुप कि पहले वो बोले फिर मैं बोलूं 
क्या इस ख़ामोशी में अब हमारी सांसें ही बातें करेंगी 
कुछ अपने दिल का हाल बयाँ करेंगी 
और कुछ मेरे दिल का सुना करेंगी
दिलों की धड़कने आपस में टकराती हैं
लहरों की तरह शोर मचाती हैं
क्या उसने सुना इनकी आहट को 
क्या उनके दिल में चल रही है कुछ हलचल
कुछ मेरे दिल में भी है उथल-पुथल
क्यों लफ़्ज़ों का कारवां अब थम सा गया है 
क्या हुआ ये और क्यों हुआ ये 
सवाल अब हम दोनों अपने से ही करते हैं
बीच-बीच में चोर निगाहों से इक-दूजे को देखा करतें हैं
आख़िर कब तक सांसें-सांसों से बातें करेंगी
कब तक धड़कने शोर करेंगी
और कब, लफ्ज़ होंठो का साथ छोड़ेंगे
चलो अब हम अपनी ख़ामोशी तोड़े
इस चुप्पी को अब पीछे छोड़े
चलो अब पिछली बातों को छोड़
एक नई शुरुआत करें
एक नई शुरुआत करें...







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