अपनी-अपनी ख़ुशी

     घर जाने के लिए बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार कर रहा था कि तभी चार-पांच छोटे-छोटे बच्चे उछलते-कूदते स्टॉप पर पहुंचे. ये बच्चे शायद पास की किसी बस्ती के रहने वाले थे और उचक-उचक कर देखने लगे कि बस आ रही है नहीं. इतने में डी. टी. सी. लाल ऐ-सी बस आती दिखी. जैसे ही वो बस रुकी, झट से सभी बच्चे उसमे चढ़ने लगे. ठीक उसी समय बस कंडक्टर की नज़र उन बच्चों पर पड़ी. 'नीचे उतरो' - ज़ोरदार आवाज़ में वो इन बच्चों पर चिल्लाया. लेकिन सभी बच्चे हंसते-हंसते 'ले-ली, ले-ली' कह कर भागते हुए बस से नीचे उतरने लगे. इसके बाद बच्चे फिर से दूसरी बस का इंतज़ार करने लगे जैसे ही कोई लाल ऐ-सी बस रुकती और ये सभी बच्चे उसमे चढ़ते और फिर ले-ली, ले-ली कह कर भागते हुए नीचे उतरने लगते. दरसअल इन बच्चों को जाना कहीं नहीं था सिर्फ इंतज़ार होता था कि लाल ऐ-सी बस आये और ये बच्चे ऐ-सी की ठंडी हवा खाएं. शायद इन बच्चों के लिए इसी में ख़ुशी छिपी थी. अगर कंडक्टर की नज़र न पड़ती तो शायद थोड़ी दूर तक घूम भी आते. बच्चों की इस मासूम सी शरारत ने मुझे बस का इंतज़ार ही भुला दिया. अब मैं अपनी बस का नहीं लाल ऐ-सी बस का इंतज़ार करने लगा...

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