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ख़ुद से ख़ुद की बात करने की एक कोशिश...

आज ख़ुद से ख़ुद की बात करनी है क्योंकि आज की है मैंने ख़ुद से ही गुज़ारिश कभी मौक़ा ही नहीं मिला ख़ुद को समझने का उत्सुक हूँ  मैं ख़ुद को जानने को पहले कभी नहीं की है ये कोशिश लेकिन होगा कैसे ख़ुद का सामना भय-मिश्रित उत्सुकता अन्दर ही अन्दर कौंध रही है अपने अन्तर्मन को कैसे और क्या बतलाऊ सच और झूठ का आवरण जो दुनिया के लिए ओड़ा उसे कैसे मैं ख़ुद को दिखाऊ उस दर्पण को कैसे मैं देखूं जिसका प्रतिबिम्ब मैं पहले से ही पहचानू दूसरों के लिए न जाने क्या-क्या बन बैठा अपने लिए क्या मैं बनू यही सोच हूँ परेशान लेकिन ये कोशिश है ख़ुद को ख़ुद की कमी बताने की उन गल्तियों को स्वीकार करने की जो की हैं मैंने दुनिया से छिप कर फिर भी है ये एक सार्थक कोशिश जिसका प्रतिउत्तर शायद अभी न मिले उम्मीद है कि इस चर्चा का कुछ निष्कर्ष निकले कुछ नव-परिवर्तन हो मुझमे एक नया व्यक्तित्व बन कर मैं उभरू लेकिन उस पहले देना होगा मुझे निमंत्रण ख़ुद को क्योंकि आज ख़ुद से ख़ुद की बात करनी है...

आइये इस नए बिहार की उन्नति के लिए अब दुआ करें...

नीतीश बाबू अब प्रचंड बहुमत के साथ दुबारा सत्ता में लौटे हैं. बिहार की नई उम्मीदों, नई आशाओं के साथ इस देश को भी अब आस है कि बिहार में वो सब होगा जिससे अब तक बिहार वंचित रहा है. जवानी का पलायन, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, क़ानून  व्यवस्था, अब भी ये समस्याएं हैं जो नीतीश कुमार का समय-समय पर इम्तिहान लेंगी.  राष्ट्रीय जनता दल २२  सीटें ,  कांग्रेस ४ और  लोक जन शक्ति पार्टी ३ सीटें,  अन्य ८ - ये विपक्ष की इन ताज़ा चुनावों के बाद की स्थिति है. विपक्ष रहित सदन उन्हें सत्ता में खुले हाथ अपने पारी खेलने की इजाज़त ज़रूर देता है लेकिन ये पारी अवरोधों रहित होगी या नहीं ये तो समय ही बताएगा. जो वादे बिहार की जनता से चुनाव के दौरान हुए थे उन वादों को पूरा करने के लिए पांच साल का समय नीतीश कुमार को मिल गया है. अब ये नीतीश कुमार पर निर्भर करता है कि वो इन पांच सालों का उपयोग किस तरह करते हैं - जनता की सेवा में या फिर और किसी कार्यों में. बिहार की जनता ने अब जाति को किनारे कर विकास को वोट दिया है. ये विकास उन बिहारवासियों की आस है जो महाराष्ट्र में पिटते हैं, पंजाब के खेतों में जान खपाते हैं, राजस्थान या

क्या थामोगी तुम मेरा हाथ

तुम्हारा इंतज़ार रहेगा जिंदगी के हर मोड़ पर उस मोड़ पर भी जब सभी छोड़ देंगे मेरा साथ जब तलाश होगी किसी अपने की क्या तुम थामोगी उस  वक़्त  मेरा हाथ? तुम्हे ही दूर तक साथ जाने के लिए चुना है मैंने  उम्मीदों के साये मैं सपना बुना है मैंने. पता नहीं कितनी दूर का साथ है मेरा तुम्हारा  पर जब तक है साथ तुम्हारा  ये सफ़र यादगार होगा बस दो लोगों का ही कारवां होगा सांसों के ज़रिये बातें होगी  कुछ अपनी कुछ बेगानी होंगी ये ज़माना समझे न समझे पर तुम जो समझो तो मुझे वो हर बात बतानी होगी देंगे तुम्हारे हर सवाल का जवाब  लेकिन उससे पहले तुम्हे देना होगा मेरा साथ उस मोड़ पर भी जब सभी छोड़ देंगे मेरा साथ

अपने बचपन को भी ऐसे ही देखा

वो बचपन की यादें कोई तो लौटा दे वो बचपन का हँसना वो छुटपन का रोना कोई तो लौटा दे वो मेरी बिसरी यादें मां का आँचल पकड़ यूँ चलना पिता संग बाज़ार जाने को मचलना वो बचपन की यादें कोई तो लौटा दे. एक बार फिर पीछे लौटने का मौका तो दे समय का पहिया जो फिर पीछे घुमा दे. बिजली चले जाने पर दोस्तों संग वो छुपना छुपाना बाद में मिल बैठ खूब हँसी ठठ्ठा लगाना जीवन के धुंधले पलों का मैं अब मोल समझ पाया अब समझा, क्या थे वो दिन जिन अनमोल रत्नों को लुटाया कोशिश में हूँ उन पलों को समेटूं यादों की चंद कतरन लिखूं ज़िन्दगी के पन्नो पर  क्या पता, जीवन के किसी मोड़ पर सामना हो बचपन से संग बांटेगें अब तक के पलों का लेखा.  क्या आपने भी मेरी ही तरह अपने भी बचपन को ऐसे ही देखा?

सिर्फ, दो मिनट का मेला

सिर्फ, दो मिनट का मेला लगता है यहाँ क्या कभी आपने देखा है ये जहाँ ये मेला लगता है आपके, मेरे शहर के हर उस चौराहे पर जहाँ गाड़ियों का काफिला सिर्फ दो मिनट के लिए रुकता है. मेले में सौदागर भी आतें है दो मिनट की दुकान लगाते है और फिर, किनारे के फुटपाथ पर खड़े हो जाते हैं. और इंतज़ार करते है अगली बार होने वाली लाल बत्ती का ताकि गाड़ियों का काफिला फिर आ कर रुके. और वो कर सके अपने लिए दो वक्क्त की रोटी का जुगाड़ फूल, खिलौने, तिरंगा झंडा ....... न जाने क्या-क्या बिकता यहाँ सिर्फ, दो मिनट का मेला लगता है यहाँ गाड़ियों के शीशे बंद होने लगते, गर्दन घूम जाती हैं इन्हें देख कर लेकिन फिर भी, कुछ तो इनसे ले लेते फूल अपने प्रियसी को सोच कर शायद सारे संसार में यही ऐसे सौदागर हैं जो चाहते हैं कि शहर भर में जाम लगे सुबह-शाम इनके मेले में गाड़ियों से चार चाँद लगे जब अगली बार आप भी गुजरने लगे ऐसे ही चौराहे से तो ज़रूर हो शामिल ऐसे किसी मेले में देख ले इन सौदागरों को सौदा करते हो सके तो कुछ खरीद ले इन अनोखे सौदागरों से....... 

मेरे जीवन का संघर्ष...

अपने जीवन का संघर्ष मुझे अकेले ही  लड़ना है. हार हो या जीत, मुझे स्वीकार करना है. अपने जीवन का संघर्ष मुझे अकेले ही लड़ना है जानता हूँ यह संघर्ष बहुत दूर तक चलेगा मेरे हौसलों का इम्तिहान अभी लम्बा चलेगा. चक्रव्यूह जीवन  का  भेदना  असंभव  नहीं,   कठिन है. रणनीति मेरी अभी भी छिन्न-भिन्न है. लेकिन विश्वास मेरे मन का अभी भी प्रचंड है. लक्ष्य तक पहुँच कर, नव लक्ष्य सृजित करना है, अपने जीवन का संघर्ष मुंझे अकेले ही लड़ना है अपने जीवन का संघर्ष मुंझे अकेले ही लड़ना है...

हमारे हिस्से का आसमान

(ये कविता उन बाल मजदूरों के मन के हालात बयां कर रही है,   जो सुबह उठते ही काम पर निकल जाते हैं) हमें  भी अपने हिस्से का उजला आसमान छूने दो. हमारे आसमान में अभी काली रात-सा अंधेरा है. चाँद की रोशनी का दूर कही  बसेरा है. हमारी उम्मीदों को भी अब पंख लगने दो, एक ऊँची उड़ान को थोड़ा-सा सबल दो, हमें भी अपने हिस्से का उजला आसमान छूने दो.... बचपन क्या होता है हमने नहीं जाना, आज तक अपने वजूद को नहीं पहचाना. छोटी सी हथेली की लकीरे भी छोटी हैं, क्या हमारी किस्मत अभी से ही खोटी है? उस सुबह का हमें भी इंतज़ार है, जब मुट्ठी में हमारा आसमान क्या, ये सारा संसार है........

कर दो बच्चों सा-मन

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हे ईश कर दो बच्चों-सा मन, निर्मल तन और पावन मन. ऐसी दुनिया ऐसा संसार, जहाँ बहती प्यार की धार. इर्ष्या द्वेष से कोंसो दूर, सारा समय मस्ती में चूर. खेल खिलोनो पर होती कुट्टी, फिर भी नहीं होती छुट्टी. जैसा भी हो लौटा दो बचपन, हे ईश कर दो बच्चों-सा मन. बड़े हुए तो क्या बड़े हुए, कहने को हम सयाने हुए. न निर्मल मन न पावन तन. भयभीत दुनिया आतंकित संसार, जहाँ बहती खून की धार. इर्ष्या द्वेष के सर्प हुए बड़े बड़े, धरा के  चंद  टुकड़ों के लिए लड़े मरे.

इंतज़ार

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यह कविता  उन हर समय ख़ाली रहने वाले झूलों के मन की भावनाएं व्यक्त कर रही हैं जो कि बच्चों का इंतज़ार कर रहे हैं ..... हमें है उनका इंतज़ार हम हैं उनके लिए बेकरार उनके लिए हम यहाँ लगवाए गए सुनहेरे रंग हम पर चिड्काए गए कौन हैं हम?.......... हम हैं वो रंगीन झूले, जिन्हें ये प्यारे बच्चे ही भूले सूनसान और वीरान हुए हम बच्चों के शोरगुल को तरसे हम सुबह शाम लगते थे, बच्चों के मेले अरे, अब कोई तो हमे भी तो ठेले चैट, नेट और इ-मेल के संग हो गए एक कमरे बंद. निकलो बहर इन दडबों से लो खुली हवा में थोड़ा सा आनंद क्या पता किसी दिन नगर निगम का अधिकारी आयेगा  सर्वे होगा और मॉल बन जायेगा. वहां सब कुछ होगा लेकिन, हम न होंगे वो दिन आने से पहले आ जाओ एक बार  हमें है सिर्फ तुम्हारा इंतज़ार, तुम्हारा इंतज़ार..............

अतिक्रमण

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  अतिक्रमण  हल्ला मचा शहर में गुलदार आ गया, चारों तरफ भय और आतंक छा गया. सोचो ज़रा, क्यों शहर में गुलदार आ गया? अतिक्रमण किसने किया,  ये सोचने का वक़त आ गया. हल्ला मचा शहर में गुलदार आ गया. उजाडोगे किसी का घर तो वो चुप न रहेगा अपने घर की रक्षा को वो कुछ भी करेगा ये मूक जानवर अपना आक्रोश प्रकट करतें हैं तुम्हारा अपने घर में प्रवेश निषिद्ध करतें हैं. तुम्हारे घर का विस्तार हमारे घर की कीमत पर ये समझौता किसने किया हमे शक है नियत पर अब दोबारा विचारने का समय आ गया. हल्ला मचा शहर में गुलदार आ गया

वार्तालाप जिंदगी से ...

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वार्तालाप जिंदगी से ... आ बैठ जिंदगी मेरे संग भर रही तू कैसे रंग? मन की बातें करनी हैं तुझसे आ कुछ हाल पुछले ले मुझसे कितना सुख और दुःख मेरे हिस्से आ बांतले  मुझसे मेरे किस्से अनुभव मेरे कुछ खट्टे  कुछ मीठे हैं कुछ सादे कुछ कसीले हैं कुछ प्रश्न अभी भी हैं निरुतर जानने हैं मुझे इनके उत्तर क्या है मेरा इस रंगमंच पर निमित सोच इसे मैं भी हूँ दंग आ बैठ जिंदगी मरे संग भर रही तू कैसे रंग................................