ख़ुद से ख़ुद की बात करने की एक कोशिश...

आज ख़ुद से ख़ुद की बात करनी है
क्योंकि आज की है मैंने ख़ुद से ही गुज़ारिश
कभी मौक़ा ही नहीं मिला ख़ुद को समझने का
उत्सुक हूँ  मैं ख़ुद को जानने को
पहले कभी नहीं की है ये कोशिश
लेकिन होगा कैसे ख़ुद का सामना
भय-मिश्रित उत्सुकता अन्दर ही अन्दर कौंध रही है
अपने अन्तर्मन को कैसे और क्या बतलाऊ
सच और झूठ का आवरण जो दुनिया के लिए ओड़ा
उसे कैसे मैं ख़ुद को दिखाऊ
उस दर्पण को कैसे मैं देखूं
जिसका प्रतिबिम्ब मैं पहले से ही पहचानू
दूसरों के लिए न जाने क्या-क्या बन बैठा
अपने लिए क्या मैं बनू यही सोच हूँ परेशान
लेकिन ये कोशिश है ख़ुद को ख़ुद की कमी बताने की
उन गल्तियों को स्वीकार करने की
जो की हैं मैंने दुनिया से छिप कर
फिर भी है ये एक सार्थक कोशिश
जिसका प्रतिउत्तर शायद अभी न मिले
उम्मीद है कि इस चर्चा का कुछ निष्कर्ष निकले
कुछ नव-परिवर्तन हो मुझमे
एक नया व्यक्तित्व बन कर मैं उभरू
लेकिन उस पहले देना होगा मुझे निमंत्रण ख़ुद को
क्योंकि आज ख़ुद से ख़ुद की बात करनी है...

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