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तलाश...

हर किसी को अपने हिस्से के आसमान की  है   तलाश  उस आसमान को छूने की हर मन में दबी   है   एक आस  मंज़िल बहुत दूर नहीं ,   यहीं-कहीं  है   आस-पास  हर किसी को अपने हिस्से के आसमान की   है   तलाश  उस आसमान को छूने की हर मन में दबी  है   एक आस चलते-चलते ,   उड़ते-उड़ते कहीं कम न हो प्यास मन में अगर हौसला है तो फिर क्या बात उस ऊंचाई को पाने की ललक सपनों   में हो   उस आस का   एक   छोर इस   उम्मीद से बंधा हो   कि कभी तो अपने हिस्से को छू   लेंगे हम   बदलेगा कभी तो अपनी क़िस्मत का रंग इन्द्रधनुष के सभी रंग उस पल होंगे अपने   संग सूरज की तरह आसमान में चमकने की है   चाह लेकिन   मालूम है बहुत कठिन है ये राह   इन राहों में भी  कहीं  तो  होंगे  कुछ पलाश   हर किसी को अपने हिस्से के आसमान की  है   तलाश  उस आसमान को छूने की हर मन में दबी   है   एक आस  मंज़िल बहुत दूर नहीं ,   यहीं-कहीं  है   आस-पास  हर किसी को अपने हिस्से के आसमान की   है   तलाश...

फलक (फेसबुक लघु कथाएं)

सबसे  पहले  फलक (फेसबुक लघु कथाएं) का धन्यवाद, जिसने इन कहानियों  को  आकार  देने में बहुत  सहायता की.  पिछले कुछ समय से फ़लक (फेसबुक लघु कथाएँ) के मंच पर कहानियां लिख रहा हूँ. आज उन सभी कहानियों  को  साझा कर रहा हूँ.  इन कहानियों का तानाबाना हमारी ज़िन्दगी के चारों ओर ही बुना गया है. एक कोशिश है अपने आस-पास के माहौल के भीतर झाँकने की. .. 1 .  July 3 at 6:07pm        रेड लाइट पर काले रंग क़ी लम्बी-सी कार आकर रुकी. कार क़ी पीछे क़ी सीट पर बैठा एक बच्चा आइसक्रीम खा रहा था. सड़क किनारे फुटपाथ से के एक बच्चा उतरा और कार क़ी खिड़की के पास खड़े हो उस बच्चे को देखने लगा. आइसक्रीम थोड़ी-सी ही बची थी. मम्मी कार का शीशा बंद करने लगी. तभी न जाने उस बच्चे के मन में क्या आया? बच्चे ने मम्मी का हाथ रोका और आइसक्रीम कार क़ी खिड़की से बाहर फेंक दी. वो बच्चा सड़क से आइसक्रीम उठा कर खाने लगा. बच्चे ने बच्चे के मन को समझ लिया लेकिन एक मां बच्चे का मन न समझ सकी... 2.   J uly 16 at 11:17pm     अभी दोनों ने साथ-साथ एक ही थाली में खाना खाया. दोनों ने अपने रिक्शे उठाये और विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के गे

जा रहे हो तुम मेरे शहर...

जा रहे हो तुम मेरे शहर ज़रा तुम मुझसे मिल कर जाना कुछ बाते कहनी है तुम से ज़रा दो घड़ी का समय मुझे देते जाना कुछ सामान नहीं देना है तुम को  बस एक छोटा-सा काम है तुमसे  कुछ कहनी है बातें, अपने शहर की तुम से बहुत-सी यादें तो मैं अपने साथ ले आया   लेकिन अभी भी बहुत सी यादें छूट ही गयी हैं  उन्हें ज़रा तुम लेते आना  जा रहे हो तुम मेरे शहर  ज़रा तुम मुझसे मिल कर जाना कुछ बाते कहनी है तुम से ज़रा दो घड़ी का समय मुझे देते जाना कहना मेरे शहर से तुम  कि उसे याद करके मैं अभी भी रोता  हूं बंद कमरे में उसकी यादों को संजोता हूं  अपने शहर वो गलियां याद आती हैं जहाँ गुज़ारी शामें, अपनी जिंदगी की मैंने हंसी जिन्हें सोच आ जाती है, आँखों में अब भी नमी  कोई कमी नहीं इस नए शहर में  लेकिन अपना शहर तो अपना ही होता है  तभी तो उसे याद कर, हर एक अकेले में रोता है  इस नए शहर में दिल लगाने की जितनी भी कोशिश करता हूं  जाने क्यों, उतना अपने ही से लड़ता हूं  फिर ये सोच कर अपने दिल को तसल्ली देता हूं कि ढूंढ लेंगे इस शहर में भी अपनापन   इसी कोशिश में बीत रही

एक सफ़र मेट्रो में...

जब भी सफ़र करता हूँ मेट्रो में  कुछ अजीब सा महसूस होता है  कुछ ऐसी ख़ामोशी, कुछ ऐसी चुप्पी  शायद आपको भी चुभती होगी  लगता है  ऐसे,  जैसे  हज़ारों की भीड़ में अकेले हैं   कुछ चेहरे पुराने और कुछ नए होते हैं  लेकिन सभी चेहरों पर एक ही भाव होते हैं  होंठों पर चुप्पी, जैसी कोई सजा हो मिली  इंसान है या पत्थर की मूरत क्यों बनी ऐसी ये सूरत  ये कैसा आवरण सभी ने लपेटा है? एक अजीब सा सन्नाटा छाया है जिसमे सिर्फ मेट्रो का शोर है   अरे! ऐसे चुप क्यों बैठे हो किसकी गिरी सरकार है  किसके जीवन में चिंताएं नहीं हज़ार है  जिसने   पहली  बार किया सफ़र, उसके लिए तो ये सफ़र यादगार है     लेकिन जो रोज़ करतें है सफ़र, उन्हें अपने साथियों के चंद शब्दों का इंतज़ार है  सुना था ट्रेन के सफ़र में रिश्ते-नाते जुड़ जाते थे लेकिन इस सफ़र में साथ मिल कर भी, कुछ बोल नहीं  पातें हैं  संग अपने ख़ामोशी  लाते हैं और ख़ामोशी ले जाते हैं  चुप रहते हैं और चुप्पी साथ ले जाते हैं... सफ़र में अकेले आतें हैं और अकेले चले जाते हैं   

आख़िर कब तक

आख़िर कब तक मैं यहां-वहां की बातें करूं कुछ कहना चाहता हूँ पर कैसे कहूं जो दिल में है उसे कब तक समेटे रहूं वो कुछ ख़ास लफ्ज़, जो होंठों तक आतें हैं न जाने क्यों, फिर वापस लौट जातें हैं डरता हूँ कि कहीं तुम्हें खो न दूं अपने को कहीं दर्द और तनहाइयों में न डुबो दूं शिक़ायत है अपने आप से कि अभी तक  तुमसे, वो बात कह नहीं पाया हर बार अपने को, जहां था वहीं पाया  हिचक है मन में अभी जो न थी पहले कभी कब तक मैं यूँ ही आहें भरूं  आख़िर कब तक मैं यहां-वहां की बातें करूं तुम्हारे दिल में क्या है, जानना चाहता हूँ तुम से वो बात करना चाहता हूँ जो कहने को सोचा है उसे तुम्हे कितना बता पाऊंगा यही सोच कर उलझन में हूँ अब तुम ही बता दो कैसे वो बात तुमसे ही कहूं आख़िर कब तक मैं यहां-वहां की बातें करूं कुछ कहना चाहता हूँ पर कैसे कहूं

सपनो की मंज़िल

तुम आज जहाँ पर हो ये कभी तुम्हारा सपना था  तुम आज जहाँ पर हो ये आज भी, किसी और का सपना है इस सपने को सच करने को तुम्हे रात-रात भर जगना था सोच तुम्हारी उस वक़्त कि अब हर हाल में कुछ करना है कितनी कोशिशें नाकाम हुईं तब जाकर ये मंज़िल अपने नाम हुई अरसा हुआ उन यादों को  लेकिन आज भी वो ज़हन में ज़िंदा हैं  मालूम नहीं कि कल क्या हो   लेकिन, तुम आज जहाँ पर हो ये कभी तुम्हारा सपना था  तुम आज जहाँ पर हो ये आज भी, किसी और का सपना है याद होगा तुम्हे, कैसे पहुंचे यहाँ तक मीलों दूर का सफ़र किया यहाँ तक खट्टे-मीठे कुछ दौर आएं होंगे कुछ चुभते होंगे, कुछ गुदगुदाते होंगे याद होगा तुम्हे कैसे साथी मिले यहाँ तक कुछ छूटे, कुछ साथ रहे और कुछ नए बने यहाँ तक  लाज़मी हैं कि आगे और आगे अभी जाना होगा देखें होंगे और भी सपने तुमने अनजानी राहों पर चलना होगा शायद उनकी मंज़िल अभी दूर कहीं है ज़िंदगी का सफ़र बस यूँ चलता रहेगा सपनो का टूटना और बुनना चलता रहेगा  अपने यादों को यूँ ही दिल में संजो कर रखना फिर किसी अपने के साथ ये यादें साझा करना  लेकिन अपने सपनो का साथ छूटने न देना क्योंकि, तुम आज जहाँ पर हो ये कभी तुम्ह

इजाज़त

खिलखिला कर हँसना तो चाहता हूं, लेकिन मेरे हालात मुझे इजाज़त नहीं देते. रोना भी तो चाहता हूं, लेकिन मेरे आंसू मुझे इजाज़त नहीं देते. आसमान में ऊंची उड़ान तो भरना चाहता हूं, लेकिन टूटे पंख इजाज़त नहीं देते. ज़मीं पर भी तेज़ चलना चाहता हूं, लेकिन रास्तों के अनजाने मोड़ मुझे इजाज़त नहीं देते. अपने पर भरोसा तो बहुत है, लेकिन मंजिल की दूरी इजाज़त नहीं देती. सपने तो देखना चाहता हूं, लेकिन मेरी सूनी आँखे मुझे इजाज़त नहीं देती. जिंदगी के सवालों से उलझना तो चाहता हूं, लेकिन कशमकश मुझे इजाज़त नहीं देती. हवा का रुख़ मोड़ना तो चाहता हूं, लेकिन मुझे ये तूफ़ान इजाज़त नहीं देता.  कोशिश तो करना चाहता हूं, लेकिन नाकामयाबी  का डर इजाज़त नहीं देता.  अपने अन्दर बदलाव तो लाना चाहता हूं, लेकिन अंतर्मन इजाज़त नहीं देता. लक्ष्य को साधना तो चाहता हूं, लेकिन भटकता मन इसकी इजाज़त नहीं देता.    आने वाले कल को देखना तो चाहता हूं, लेकिन मेरा आज इसकी इजाज़त नहीं देता. ख़ुशनुमा लम्हों का इंतज़ार तो करना चाहता हूं, लेकिन मेरी बेसब्री इजाज़त नहीं देती.   अपनी ज़िंदगी को जीना तो चाहता हूं, लेकिन कम होत

मेरी-तुम्हारी चुप...

मैं भी हूँ चुप और तुम भी हो चुप क्यों इतनी ख़ामोशी है गहरायी फिर क्यूँ मैं तुम से और तुम मुझ से मिलने  इतनी दूर तक चली आयीं  दोनों के संग होते हुए, अभी भी है तन्हाई  या पिछली मुलाक़ात की अभी दूर नहीं हुई रुसवाई क्या इस सोच में हो चुप कि पहले वो बोले फिर मैं बोलूं  क्या इस ख़ामोशी में अब हमारी सांसें ही बातें करेंगी  कुछ अपने दिल का हाल बयाँ करेंगी  और कुछ मेरे दिल का सुना करेंगी दिलों की धड़कने आपस में टकराती हैं लहरों की तरह शोर मचाती हैं क्या उसने सुना इनकी आहट को  क्या उनके दिल में चल रही है कुछ हलचल कुछ मेरे दिल में भी है उथल-पुथल क्यों लफ़्ज़ों का कारवां अब थम सा गया है  क्या हुआ ये और क्यों हुआ ये  सवाल अब हम दोनों अपने से ही करते हैं बीच-बीच में चोर निगाहों से इक-दूजे को देखा करतें हैं आख़िर कब तक सांसें-सांसों से बातें करेंगी कब तक धड़कने शोर करेंगी और कब, लफ्ज़ होंठो का साथ छोड़ेंगे चलो अब हम अपनी ख़ामोशी तोड़े इस चुप्पी को अब पीछे छोड़े चलो अब पिछली बातों को छोड़ एक नई शुरुआत करें एक नई शुरुआत करें...

अपने-अपने हिमालय बनाएं...

चलो, आज हम अपने-अपने हिमालय बनाएं उसके शिखर को छूकर एक नया इतिहास बनाएं हम सभी ने सोचे है अपने जीवन के हिमालय आज उसी सोच को धरा पर उतार लाएँ  चलो, आज हम अपने-अपने हिमालय बनाएं उसके शिखर को छूकर एक नया इतिहास बनाएं क्या हो हमारे हिमालय की ऊंचाई  क्या हो उस तक पहुँचने का रास्ता  ये सभी कुछ तो हमे ही निश्चित करना है मालूम है हमें ये सफ़र आसां न होगा  रास्ते की मुश्क़िलों से दो-चार होना होगा अपने हौसलों का इम्तेहान हमे देना होगा अपने सब्र को अभी बेसब्र बनने से रोकना होगा लेकिन अब सोचें नहीं, अपने क़दम तो बढ़ाएं  चलो, आज हम अपने-अपने हिमालय बनाएं उसके शिखर को छूकर, एक नया इतिहास बनाएं कुछ असम्भव को संभव करके दिखाएं चलो, आज तूफ़ान में कुछ दिए जलाएं  समय की रेत पर अपने कुछ निशां बनाएं इस कठिन डगर पर आने वालों को नई दिशा दिखाएं चलो, आज हम अपने-अपने हिमालय बनाएं उसके शिखर को छूकर एक नया इतिहास बनाएं...

हमारे रिश्ते...

हमारे रिश्ते भी क्या ऐसे बने कि वो कागज़ी हो गए सिर्फ नाम के रिश्ते अपनी ज़िंदगी में रह गए वक़्त की परत में ऐसे दबे कि सब धुंधले हो गए अनजानों को क्या कहे जब अपने ही अजनबी हो गए  अपना कह कर, जिनके संग चले थे हम  रास्तो के मोड़ पर, हमको अकेला छोड़ कर  किनारे से ही, वो हम से कट लिए   हमारे रिश्ते भी क्या ऐसे बने कि वो कागज़ी हो गए सिर्फ नाम के रिश्ते अपनी ज़िंदगी में रह गए  क्या कहेंगे दुनिया से कि वो हमारे क्या थे  ये सोच कर परेशान हूँ कि वो अब हमारे क्या हैं आवाज़ को क्या, हम तो उनकी यादों को भी तरसे न जाने क्यों, आज बहुत दिनों के बाद ये नैना भी बरसे   रिश्ते भी ऐसे बने कि उनमे अहसासों  की दस्तक हो लम्हों का मिलना और फिर सदियों का बिछुड़ना न हो उनमे वो पहले वाली बातें हो कम ही सही, लेकिन मुलाक़ातें तो हों आख़िर रिश्ते की बड़ी है नाज़ुक डोर दोनों तरफ से बंधा हो इसका छोर लेकिन फिर सोचता हूँ कि सिर्फ मेरे चाहने से होगा क्या कुछ उनकी तरफ से पहल भी तो हो इसी इंतज़ार में दिल से निभाए रिश्ते कागज़ी हो गए सिर्फ नाम के रिश्ते अपनी ज़िंदगी में रह गए...

न रह इस शोर में तू ख़ामोश...

जो लोग चुप  रहकर अन्याय को देखते और सहते हैं,  लेकिन  कुछ करते नहीं हैं.  यह कविता उन्ही लोगों के लिए है ... न रह इस शोर में तू ख़ामोश आख़िर कहाँ गया तेरा वो जोश क्या चुप रहना तेरा है जवाब लेकिन ऐसे  तो  नहीं बनेगी ये बात   क्यों सोया तेरे अंदर का इंसान उसको न समझ तू यूँ नादान एक तेरी आवाज़ की अभी भी कमी है  आँखों में तेरी अब क्यों नमी है क्या हालात से किया तूने समझौता डाल दे इस भंवर में अपनी नौका  तोड़ दे अपने अन्दर के इस चुप को  दूर कर अपने मन के इस घुप को   पूर्ण कर इस यज्ञ में  अपनी  आहूति अब तो तेरे प्रण से जलेगी ये ज्योति अपने  सुप्त ज्वालामुखी  को तू झकझोर  और मचा दे चहुँ ओर तू शोर    ये कैसी हिचक और कैसी घबराहट  सुने आज ज़माना तेरी हर आहट लेकिन पहले अपने मन की दीवारों को तू तोड़ फिर इस संसार से नाता तू जोड़  कहाँ दबा तेरे अंदर का आक्रोश     न रह इस शोर में तू खामोश  आख़िर  कहाँ गया तेरा वो जोश...  

क्योंकि मिस्र ने अब हमें नई राह दिखाई है...

     मिस्र   की जनता को तानाशाह हुस्ने  मुबारक  से  आज़ाद होने पर   मुबारक़  और साथ ही दुनियां के दूसरे देशों की जनता को राह दिखाने के लिए धन्यवाद.  सारी दुनिया इस जन क्रांति को बरसों तक याद रखेगी. अहिंसा क्या होती है? जन आन्दोलन क्या होता है? मिस्र की जनता ने दिखा दिया. आख़िर इस दुनिया को महात्मा गांधी के अहिंसा के सूत्र की मज़बूती का अंदाज़ा लग गया होगा. इसलिए सावधान हो जाओ दुनिया को मन मर्ज़ी से  चलाने  वालों क्योंकि जनता अभी आती है. यमन, जोर्डन, सीरिया, अल्जीरिया, इटली, म्यांमार में  हो रहे  सरकार विरोधी प्रदर्शन इसी बात का संकेत देते हैं कि जनता को राह तो मिल गयी है, बस मंज़िल तक पहुँचने की देर है.     इधर भारत में भी  मिस्र  की  इस जन क्रांति के असर की बात हो रही है कि भारत की जनता अभी तक शांत क्यों है? क्या ये तूफ़ान  के आने से पहले की  शांति  है? जिस भारत के महात्मा गांधी ने दुनियां को अहिंसा का पाठ पढ़ाया, क्या उसी भारत की जनता अहिंसा के अस्त्र को भूल चुकी है? हम मूक दर्शक बन कर अपनी सरकार के कारनामों को देख रहे हैं. आख़िर ये मौन कब टूटेगा? हम कब जागेंगे? दूसरों को लोकतंत्र

भक्ति या फिर कुछ और...

इस लेख को लिखने से पहले मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि ये लेख उस सर्वशक्तिमान, सर्वव्याप्त  ईश्वर की निंदा नहीं है बल्कि  हमारे समाज में फैली अंध श्रद्धा पर एक प्रहार है.          भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक कण कण में ईश्वर बसा हुआ है. आप जहाँ जायेंगे, ईश्वर को एक नए रूप में पाएंगे. उस ईश्वर पर विश्वास, श्रद्धा, भाव, समर्पण में कोई कमी नहीं होगी. इसलिए हमारे समाज में उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का विशेष स्थान है.      लेकिन ये समर्पण, श्रद्धा, भाव, विश्वास में अंध भक्ति शामिल हो गयी हैं. सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी भगवान से सम्बंधित हैं. तरह-तरह की तथाकथित पूजन विधियाँ है जिनसे ईश्वर को रिश्वत देने की कोशिश की जाती है. सोमवार को ही लें. सोमवार के दिन ही लाखों-हजारों लीटर दूध शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है. दही, शहद की तो बात ही अलग है. धर्म के नाम पर ऐसा क्यों? क्या भगवान सिर्फ दूध, दही, शहद चढ़ाने से ही ख़ुश हो जातें हैं? क्या और कोई उपाए नहीं है?     अब बात शनिदेव की. शनिदेव को पिछले कुछ समय से ऐसे देव के रूप में लोगों को बताया जा रहा है कि शन

इन सवालों का जवाब तुम्हारे पास ही है!

अब फिर ऐसा ना होगा, माना मुझसे भूल हुई उस ख़ता की इतनी बड़ी सज़ा, सदियों पर क़हर करो ना. अब फिर ऐसा ना होगा, माना मुझसे भूल हुई.  अब फिर ऐसा ना होगा, फिर ऐसा ना होगा. क्या बीतेगी उन लम्हों पर, जो साथ गुज़ारे हमने? क्या होगा उन क़समों-वादों का, जो किये थे हमने उस पल? कैसे बीतेगी मेरी तन्हाई, जो थी आबाद तुम्हारे संग? क्या होगा मेरी धड़कन का, जो थमने लगी है इस पल? कैसे मिटेगा उन यादों का सफ़र, जो दिल की गहराई में बसा है? क्या होगा उन सपनो का, जो बुने थे हमने मिल कर? क्या बीतेगी उन पेड़ों पर, जिनके साए में गुज़ारी थी शामें हसीं? क्या होगा मेरी उन सांसों का, जिन्होंने तय किया दिल से दिल का फ़ासला? क्या क़सूर उन लफ़्ज़ों का, जो ख़तों में बंद यादों को रोते? क्या होगा उन राहों का, जो तुम्हारे साथ के गवाह रहे हैं? क्या होगा उस तूफ़ान का, जो सीने में उठने को तैयार है? क्या होगा इन आँखों का, जिनमे तस्वीर तुम्हारी बसी है? क्या होगा उन गुलाब के फूलों का, जो ख़तों में तुम्हारे छिपें हैं? क्या होगा उन यादों का, जो हर सांस के साथ ज़िंदा है? क्या होगा मेरे दिल का, हर धड़कन जिसकी नाम तुम

एक बार फिर कोशिश करके देख ले

ये कविता उन लोगों के लिए है जो अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए बहुत मेहनत करते है, लेकिन उस बिंदु पर आकर वो लोग निराश हो जाते है जब उनका लक्ष्य बिल्कुल उनके क़रीब होता है. एक ज़रा सी कोशिश उन्हें उनके लक्ष्य तक पहुंचा सकती है... एक बार फिर कोशिश करके देख ले शायद वो मिल जाये जिसकी तुझे है  ख्वाहिश थोड़ा सा और भी खपकर देख ले अभी मुट्ठी में है रेत, कोई फ़र्क़  नहीं लक्ष्य यहीं पास में उसे तो भेद  जहाँ इतना ज़ोर लगाया एक बार फिर कोशिश करके देख ले बहुत लम्बा सफ़र तय किया है तूने अब रास्ता बीच में छोड़ न देना इतना नज़दीक पहुँच कर आख़िर में यूँ हताश न होना  जो सपना देखा है तूने उसे साकार भी तो करना है  मंज़िल पर पहुँच कर ही अब सांस लेनी है जो की है मेहनत, उसका  फल भी तो लेना है क्या हुआ, जो पहले नहीं मिला   भविष्य के गर्भ में तो देख वो लिखा हो क़िस्मत में  तेरी लेकिन उस से  पहले एक बार फिर कोशिश करके देख ले  थोड़ा और भी खप कर देख ले  एक बार फिर कोशिश करके देख ले