सपनो की मंज़िल


तुम आज जहाँ पर हो
ये कभी तुम्हारा सपना था 
तुम आज जहाँ पर हो
ये आज भी, किसी और का सपना है
इस सपने को सच करने को
तुम्हे रात-रात भर जगना था
सोच तुम्हारी उस वक़्त
कि अब हर हाल में कुछ करना है
कितनी कोशिशें नाकाम हुईं
तब जाकर ये मंज़िल अपने नाम हुई
अरसा हुआ उन यादों को 
लेकिन आज भी वो ज़हन में ज़िंदा हैं 
मालूम नहीं कि कल क्या हो  
लेकिन, तुम आज जहाँ पर हो
ये कभी तुम्हारा सपना था 
तुम आज जहाँ पर हो
ये आज भी, किसी और का सपना है
याद होगा तुम्हे, कैसे पहुंचे यहाँ तक
मीलों दूर का सफ़र किया यहाँ तक
खट्टे-मीठे कुछ दौर आएं होंगे
कुछ चुभते होंगे, कुछ गुदगुदाते होंगे
याद होगा तुम्हे कैसे साथी मिले यहाँ तक
कुछ छूटे, कुछ साथ रहे और कुछ नए बने यहाँ तक 
लाज़मी हैं कि आगे और आगे अभी जाना होगा
देखें होंगे और भी सपने तुमने
अनजानी राहों पर चलना होगा
शायद उनकी मंज़िल अभी दूर कहीं है
ज़िंदगी का सफ़र बस यूँ चलता रहेगा
सपनो का टूटना और बुनना चलता रहेगा 
अपने यादों को यूँ ही दिल में संजो कर रखना
फिर किसी अपने के साथ ये यादें साझा करना 
लेकिन अपने सपनो का साथ छूटने न देना
क्योंकि, तुम आज जहाँ पर हो
ये कभी तुम्हारा सपना था 
तुम आज जहाँ पर हो
ये आज भी, किसी और का सपना है...


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सिर्फ, दो मिनट का मेला

जा रहे हो तुम मेरे शहर...

छपरा का रेडियो मयूर 90.8 और मेरी यादें...