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इंतज़ार

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यह कविता  उन हर समय ख़ाली रहने वाले झूलों के मन की भावनाएं व्यक्त कर रही हैं जो कि बच्चों का इंतज़ार कर रहे हैं ..... हमें है उनका इंतज़ार हम हैं उनके लिए बेकरार उनके लिए हम यहाँ लगवाए गए सुनहेरे रंग हम पर चिड्काए गए कौन हैं हम?.......... हम हैं वो रंगीन झूले, जिन्हें ये प्यारे बच्चे ही भूले सूनसान और वीरान हुए हम बच्चों के शोरगुल को तरसे हम सुबह शाम लगते थे, बच्चों के मेले अरे, अब कोई तो हमे भी तो ठेले चैट, नेट और इ-मेल के संग हो गए एक कमरे बंद. निकलो बहर इन दडबों से लो खुली हवा में थोड़ा सा आनंद क्या पता किसी दिन नगर निगम का अधिकारी आयेगा  सर्वे होगा और मॉल बन जायेगा. वहां सब कुछ होगा लेकिन, हम न होंगे वो दिन आने से पहले आ जाओ एक बार  हमें है सिर्फ तुम्हारा इंतज़ार, तुम्हारा इंतज़ार..............

अतिक्रमण

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  अतिक्रमण  हल्ला मचा शहर में गुलदार आ गया, चारों तरफ भय और आतंक छा गया. सोचो ज़रा, क्यों शहर में गुलदार आ गया? अतिक्रमण किसने किया,  ये सोचने का वक़त आ गया. हल्ला मचा शहर में गुलदार आ गया. उजाडोगे किसी का घर तो वो चुप न रहेगा अपने घर की रक्षा को वो कुछ भी करेगा ये मूक जानवर अपना आक्रोश प्रकट करतें हैं तुम्हारा अपने घर में प्रवेश निषिद्ध करतें हैं. तुम्हारे घर का विस्तार हमारे घर की कीमत पर ये समझौता किसने किया हमे शक है नियत पर अब दोबारा विचारने का समय आ गया. हल्ला मचा शहर में गुलदार आ गया

वार्तालाप जिंदगी से ...

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वार्तालाप जिंदगी से ... आ बैठ जिंदगी मेरे संग भर रही तू कैसे रंग? मन की बातें करनी हैं तुझसे आ कुछ हाल पुछले ले मुझसे कितना सुख और दुःख मेरे हिस्से आ बांतले  मुझसे मेरे किस्से अनुभव मेरे कुछ खट्टे  कुछ मीठे हैं कुछ सादे कुछ कसीले हैं कुछ प्रश्न अभी भी हैं निरुतर जानने हैं मुझे इनके उत्तर क्या है मेरा इस रंगमंच पर निमित सोच इसे मैं भी हूँ दंग आ बैठ जिंदगी मरे संग भर रही तू कैसे रंग................................