इंतज़ार

यह कविता  उन हर समय ख़ाली रहने वाले झूलों के मन की भावनाएं व्यक्त कर रही हैं जो कि बच्चों का इंतज़ार कर रहे हैं .....

हमें है उनका इंतज़ार
हम हैं उनके लिए बेकरार
उनके लिए हम यहाँ लगवाए गए
सुनहेरे रंग हम पर चिड्काए गए
कौन हैं हम?..........
हम हैं वो रंगीन झूले,
जिन्हें ये प्यारे बच्चे ही भूले
सूनसान और वीरान हुए हम
बच्चों के शोरगुल को तरसे हम
सुबह शाम लगते थे, बच्चों के मेले
अरे, अब कोई तो हमे भी तो ठेले
चैट, नेट और इ-मेल के संग
हो गए एक कमरे बंद.
निकलो बहर इन दडबों से
लो खुली हवा में थोड़ा सा आनंद
क्या पता किसी दिन नगर निगम का अधिकारी आयेगा 
सर्वे होगा और मॉल बन जायेगा.
वहां सब कुछ होगा लेकिन, हम न होंगे
वो दिन आने से पहले आ जाओ एक बार 
हमें है सिर्फ तुम्हारा इंतज़ार, तुम्हारा इंतज़ार..............

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