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धुप्प दा टोटा(धूप का टुकड़ा)- अमृता प्रीतम

अभी कुछ दिनों पहले ही पंजाबी की प्रसिद्ध कवियित्री अमृता प्रीतम की कुछ  कविताएँ  पढने को मिली। उनकी एक कविता पंजाबी और उसके हिंदी अनुवाद के साथ...  धुप्प दा टोटा मैनू उह वेला याद ए— जद इक टोटा धुप्प सूरज दी उँगली फड़. के न्हेरे दा मेला वैखदां भीड़ां दे विच्च गुआचिया। सोचदी हाँ — सहिम दा ते सुंज दा वी साक हुंदा ए मैं जु इस दी कुछ नहीं लगदी पर इस गुआचे बाल ने इक हत्थ मेरा फड़ लिआ तू किते लभदा नहीं— हत्त्थ नू छोंहदा पिआ निक्का ते तत्ता इक साह ना हत्त्थ दे नाल परचदा ना हत्त्थ दा खांदा वसाह न्हेरा किते मुकदा नहीं मेले दे रौले विच्च वी है इक आलम चुप्प दा ते याद तेरी इस तरहाँ जिओं इक टोटा धुप्प दा. और अब  इस कविता का  हिंदी अनुवाद धूप का टुकड़ा मुझे वह समय याद है— जब धूप का एक टुकड़ा सूरज की उंगली थाम कर अंधेरे का मेला देखता उस भीड़ में खो गया। सोचती हूँ : सहम का और सूनेपन का एक नाता है मैं इसकी कुछ नहीं लगती पर इस खोए बच्चे ने मेरा हाथ थाम लिया तुम कहीं नहीं मिलते हाथ को छू रहा है एक नन्हा सा गर्म श्वास न  न  हाथ से बहलता है न हाथ को छोड़ता है अंधेरे का कोई पार नहीं मेले

काश! कि मैं, तुम और तुम, मैं बन सकते

काश! काश! कि मैं, तुम और तुम, मैं बन सकते  तभी तुम्हें मालूम हो सकता मेरे दिल का हाल तुम मेरे दिल में देखते  मैं तुम्हारे दिल में झांक लेता  तुम्हारे लिए मेरे दिल में  प्यार का कितना बड़ा  समंदर मेरे अनकही बातों को तुम समझ लेते  अब तुम्हारी  चुप्पी को मैं जान लेता  तुम्हारी यादों को कैसे मैंने संजोया है उन पलों का किस्सा भी इसमें  जब ये फूट फूट रोया है  उस वक़्त का हिस्सा भी ज़रूर होगा तुम्हारे दिल में  जब मैंने तुम्हारा दिल दुखाया है काश! काश! कि मैं, तुम और तुम, मैं बन सकते  तभी तुम्हें मालूम हो सकता मेरे दिल का हाल  तुम मेरे दिल में देखते  मैं तुम्हारे दिल में झांक लेता तुम भी साँझ लेती  कि थे वो मेरे ऐसे ही हालात जिन्हें तुम बहाने समझती थी तब होता इल्म तुम्हें जिन्हें तुम राज़ समझती थी  कुछ ग़लतफ़हमियाँ मेरी भी दूर होती  काश! काश! कि मैं, तुम और तुम, मैं बन सकते  तभी तुम्हें मालूम हो सकता मेरे दिल का हाल तुम मेरे दिल में देखते  मैं तुम्हारे दिल में झांक लेता