संदेश

फ़रवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छपरा का रेडियो मयूर 90.8 और मेरी यादें...

चित्र
        यहां ब्लॉग पर लिखना तो पिछले साल फ़रवरी में था. यानी फ़रवरी 2016 में, लेकिन मैं लिखने बैठा हूं अब फ़रवरी 2017 में, यानी पूरे एक साल बाद. कुछ आलस और कुछ फालतू के काम और ज़िन्दगी की तमाम उलझनों में फंस कर रह गया और लिखना टलता गया. अभी कुछ दिन पहले ही सलमान और प्रिंस ने फेसबुक पर फोटो पोस्ट की कि हमारी दोस्ती को एक साल हो गया है. तभी याद आया कि छपरा पहली बार गए हुए भी तो मुझे एक साल हो गया है और फिर छपरा तो दोबारा भी होकर आ गया हूं. सोचा, अब तो लिखना ही है चाहे कुछ भी हो. सलमान, प्रिंस और बहुत से दोस्तों और चाहने वालों से मुझे मिलवाया मेरे पुराने ऑफिस लोक सभा टेलीविज़न के साथी और अब दोस्त आकाश अरुण ने. छपरा से लौट कर मैंने आकाश से कहा था कि छपरा और छपरा के पहले कम्युनिटी रेडियो के बारे में ज़रूर कुछ लिखूंगा.         सपना क्या होता है? सपने को साकार करने के लिए कैसे कड़ी मेहनत की जाती है? कैसे किसी सपने के साथ जिया जाता है और जब सपना साकार हो जाता है तब कैसा महसूस होता है? उस सपने को मैंने छपरा में साकार होते देखा है. वो सपना रेडियो मयूर 90.8 के तौर पर सामने आता है. रेडियो मयूर 90.8 छ