अपने बचपन को भी ऐसे ही देखा

वो बचपन की यादें कोई तो लौटा दे
वो बचपन का हँसना वो छुटपन का रोना
कोई तो लौटा दे वो मेरी बिसरी यादें
मां का आँचल पकड़ यूँ चलना
पिता संग बाज़ार जाने को मचलना
वो बचपन की यादें कोई तो लौटा दे.
एक बार फिर पीछे लौटने का मौका तो दे
समय का पहिया जो फिर पीछे घुमा दे.
बिजली चले जाने पर दोस्तों संग वो छुपना छुपाना
बाद में मिल बैठ खूब हँसी ठठ्ठा लगाना
जीवन के धुंधले पलों का मैं अब मोल समझ पाया
अब समझा, क्या थे वो दिन
जिन अनमोल रत्नों को लुटाया
कोशिश में हूँ उन पलों को समेटूं
यादों की चंद कतरन लिखूं ज़िन्दगी के पन्नो पर 
क्या पता, जीवन के किसी मोड़ पर सामना हो बचपन से
संग बांटेगें अब तक के पलों का लेखा. 
क्या आपने भी मेरी ही तरह अपने भी बचपन को ऐसे ही देखा?

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