हमारे रिश्ते...
हमारे रिश्ते भी क्या ऐसे बने कि वो कागज़ी हो गए सिर्फ नाम के रिश्ते अपनी ज़िंदगी में रह गए वक़्त की परत में ऐसे दबे कि सब धुंधले हो गए अनजानों को क्या कहे जब अपने ही अजनबी हो गए अपना कह कर, जिनके संग चले थे हम रास्तो के मोड़ पर, हमको अकेला छोड़ कर किनारे से ही, वो हम से कट लिए हमारे रिश्ते भी क्या ऐसे बने कि वो कागज़ी हो गए सिर्फ नाम के रिश्ते अपनी ज़िंदगी में रह गए क्या कहेंगे दुनिया से कि वो हमारे क्या थे ये सोच कर परेशान हूँ कि वो अब हमारे क्या हैं आवाज़ को क्या, हम तो उनकी यादों को भी तरसे न जाने क्यों, आज बहुत दिनों के बाद ये नैना भी बरसे रिश्ते भी ऐसे बने कि उनमे अहसासों की दस्तक हो लम्हों का मिलना और फिर सदियों का बिछुड़ना न हो उनमे वो पहले वाली बातें हो कम ही सही, लेकिन मुलाक़ातें तो हों आख़िर रिश्ते की बड़ी है नाज़ुक डोर दोनों तरफ से बंधा हो इसका छोर लेकिन फिर सोचता हूँ कि सिर्फ मेरे चाहने से होगा क्या कुछ उनकी तरफ से पहल भी तो हो इसी इंतज़ार में दिल से निभाए रिश्ते कागज़ी हो गए सिर्फ नाम के रिश्ते अपनी ज़िंदगी में रह गए...