भारत-चीन युद्ध: फ़िलहाल कोई आसार नहीं
भारत और चीन के बीच पिछले महीने से सिक्किम के निकट जारी गतिरोध के बीच दोनों देशों के संबंधो में विश्वास की कमी को महसूस किया जा रहा है. विश्वास और भरोसा कायम करने की कोशिशें, भारत और चीन दोनों की ओर से ज़रूर हुई लेकिन संबंध उस दिशा आगे नहीं बढ़ सके, जहां उन्हें पहुंचना चाहिए था. दशकों पुराने सीमा विवाद और हाल के घटनाक्रम ने दोनो देशों के संबंधो को 1962 के बाद एक फिर संशय में डाल दिया है. अगर मीडिया में आ रही ख़बरों को माने तो निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच युद्ध होने जा रहा है दोनों देश इसकी तैयारी भी कर रहे हैं. मौजूदा समय युद्ध की नहीं बल्कि संयम और एक-दूसरे पर भरोसा रखने की मांग करता है. दोनों देशों का परिपक्व नेतृत्व इस गतिरोध को दूर कर ही लेगा. मगर इस दौरान दोनों देशों के बीच जो कटुता बढ़ रही है उसे दूर करने में लम्बा समय लग सकता है.
इस गतिरोध के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में 7 और 8 जुलाई को हुए जी-20 सम्मेलन से अलग मिले. दोनों नेताओं ने ब्रिक्स देशों- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के प्रमुखों की अनौपचारिक बैठक में एक-दूसरे की तारीफ की. इस दौरान उम्मीद की गयी कि दोनों देशों के नेताओं की मुलाक़ात के बाद सीमा पर जारी गतिरोध समाप्त होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
दोनों देशों के बीच पिछले एक महीने से जारी गतिरोध के दौरान काफी कुछ हुआ, जिस पर चीन और भारत दोनों की नज़र है. वन बेल्ट-वन रोड अभियान में भारत का शामिल न होना, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका यात्रा, उसके बाद दोनों देशों की ओर से जारी बयानबाज़ी के बीच प्रधानमंत्री मोदी की इस्रायल यात्रा और फिर जर्मनी में दोनों देशो के नेताओं की बातचीत. भारत, अमरीका और जापान की नौसेनाओं के बीच जारी मालाबार युद्धाभ्यास भी चीन की नज़रों में चुभ रहा है. इस युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के भी शामिल होने की ख़बरें थी, लेकिन बाद में ऑस्ट्रेलिया ने इसमें भाग लेने से इंकार कर दिया. यह भी चीन की चिंता का सबब बना.
सीमा विवाद के अलावा भारत की अन्य चिंताओं का समाधान ढूंढने की कोशिश चीन की ओर से शायद ही की गई हो. समय-समय पर चीन ने भारत विरोधी रुख दिखाया है. चाहे वो सयुंक्त राष्ट्र में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित कराने की राह में रुकावट खड़ी करना हो या फिर परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह(एनएसजी) में भी भारत की सदस्यता का करने का विरोध हो. हर बार चीन ने इन मामलों में भारत का समर्थन नहीं किया.
पिछले माह प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी अपनी अमरीका यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मिले. भारत और अमरीका की दोस्ती को शुरू से ही चीन संदेह की नज़र से देखता रहा है और यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका यात्रा के दौरान भी दिखा, जब चीन की सरकारी मीडिया ने कहा है कि अमरीका से मिलकर चीन के मुकाबले खड़े होने की भारत की कोशिश उसके हित में नहीं है। साथ ही चीन ने इसके ‘विनाशकारी परिणाम’ की धमकी भी दी. चीन के सरकारी समाचारपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने लिखा कि चीन के बढ़ते प्रभाव से अमरीका और भारत दोनों ही देश चिंतित हैं। अखबार आगे ने कहा कि भारत अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को छोड़ते हुए चीन का मुकाबला करने के लिए अमरीका का ‘मोहरा’ बन रहा है.
इसके बाद दोनों देशों की ओर से बयानबाज़ी का दौर शुरू हो गया.
चीन ने भारत को 1962 के युद्ध से सबक लेने की सलाह दे दी. इस पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की और रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने चीन को जवाब देते हुए कहा कि 2017 का भारत 1962 से अलग है. रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि सिक्किम सेक्टर में भारतीय और चीनी सेना के बीच तनातनी की शुरूआत चीन की ओर से हुई है.
आख़िर क्या है विवाद
सिक्किम की सीमा पर डोकलाम इलाका इस बार विवाद का केंद्र बना हैं. यहां चीन, भारत और भूटान की सीमाएं मिलती है और इसी इलाके में चीन सड़क का निर्माण कर रहा था. भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं और भारत, भूटान के दावे का समर्थन करता है. भारत ने चीन को सड़क का निमार्ण रोकने को कहा. सड़क बनने से रोके जाने के बाद चीनी सेना ने भारत के दो बंकर नष्ट कर दिए और इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया.
यहां भारत का कहना है कि इस सड़क बनने से भारत के पूर्वोतर राज्यों को देश से जोड़ने वाले 20 किलोमीटर के गलियारे पर चीन की पहुंच बढ़ जाएगी. ये इलाका सामरिक रूप से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और यह बात चीन बहुत अच्छी तरह से जानता और समझता है.
इधर भूटान ने भारत की मदद से चीन के सामने अपनी चिंता ज़ाहिर की क्योंकि चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंध नहीं है।
उधर चीन ने भारत पर दबाव बढ़ाने के मद्देनज़र घोषणा कर दी कि मौजूदा गतिरोध ख़त्म होने के बाद ही कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए नाथू-ला दर्रे का रास्ता खोला जाएगा।
चीन की विस्तारवादी नीति
यहां यह भी समझना बेहद ज़रूरी है कि चीन की विस्तारवादी नीति पर समूचे विश्व की नज़र है. चीन की विस्तारवादी सोच और नीति की वजह से उसके पड़ोसी मुल्कों के साथ संबंध सहज नहीं हैं. इसमें एक अपवाद पाकिस्तान ज़रूर है. पाकिस्तान के साथ चीन की दोस्ती की मुख्य वजह भारत के साथ उसके संबंध हैं.
अपनी विस्तारवादी सोच के साथ दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों के निर्माण कर चीन इस क्षेत्र पर अपना दावा जता रहा है. पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में फिलिपींस के हाथों चीन को मुंह की खानी पड़ी थी. वर्ष 2013 में दक्षिण चीन सागर क्षेत्र को लेकर फिलिपींस ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चीन के खिलाफ़ मामला दर्ज कराया था. जिसके बाद न्यायालय ने दक्षिण चीन सागर में चीन का नाइन डैश लाइन के अंतर्गत आने वाले समुद्री क्षेत्र पर कानूनी दावा नहीं माना था.
चीन की मंशा हमेशा से ही छोटे पड़ोसी देशों पर दबाव बनाकर, उनसे अपनी बात मनवाने की रही है. सीमा विवाद से जुड़े मुद्दों में पिछले कुछ समय से चीन यही करता रहा है और इस बार भूटान के इस इलाके पर चीन की नज़र है.
समुद्री सीमा से जुड़े विवाद चीन के लिए सबसे ज्यादा चिंता का विषय हैं, क्योंकि समुद्री सीमा पर स्थित कई देशों से चीन को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया और ताइवान जैसे दक्षिण-पूर्वी देशों ने चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
एक नज़र दोनों देशों के बीच व्यापार पर भी
भारत और चीन के बीच आधिकारिक रूप से व्यापारिक संबंध 1978 में दोबारा शुरू हुए. वर्ष 1984 में दोनों देशों ने एक-दूसरे को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया. वर्ष 2000 में दोनों देशों के बीच व्यापार सिर्फ 300 करोड़ डॉलर था जो कि वर्ष 2011 में बढ़कर 73 अरब 90 करोड़ डॉलर पहुंच गया.
वर्ष 2015-16 के दौरान भारत को चीन से 46 करोड़ 14 लाख डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ.
चीन के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, चीन ने इस वर्ष जनवरी से मार्च के दौरान भारत में 7.3 करोड़ डॉलर का निवेश किया जबकि भारत ने इसी अवधि में चीन में 70.5 करोड़ डॉलर का निवेश किया.
2017 के पहले चार महीनों में भारत-चीन के व्यापार में 19.92% की वृद्धि हुई और यह 26.02 अरब डॉलर पर पहुँच गया. चीन में भारत का निर्यात 45.29% बढ़कर 5.57 अरब डॉलर रहा, जबकि चीन से भारत का आयात 14.48% की वृद्धि के साथ 20.45 अरब डॉलर पर पहुंच गया.
दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि होने बाद भारतीय कंपनियों ने चीन में निवेश किया है वहीं चीन की सौ से भी ज़्यादा कंपनियों ने भारत में अपने कार्यालय खोले हैं. दोनों देश वर्ष 2005 से समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने के बाद से ही हर वर्ष भारत-चीन वित्तीय संवाद का आयोजन करते हैं.
फ़िलहाल चीन के लिए यह संभव नहीं है कि वो इस मुद्दे का समाधान करने के बजाए भारत पर हमला करे. यहां दोनों ही देश इंतज़ार करो और देखो की नीति पर चल रहे हैं. कौन अपने क़दम पहले वापिस खींचेगा शायद इसी बात पर दोनों की नज़र है. समय की मांग भी यही है कि इस गतिरोध को जल्द से जल्द दूर किया जाये. वैसे भी विश्व के दूसरे देश यह कभी नहीं चाहेंगे कि एशिया के ऐसे दो बड़े देशों के बीच लड़ाई के आसार भी पैदा हो, जिन्होंने समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था को संभाला है.
इस गतिरोध के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में 7 और 8 जुलाई को हुए जी-20 सम्मेलन से अलग मिले. दोनों नेताओं ने ब्रिक्स देशों- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के प्रमुखों की अनौपचारिक बैठक में एक-दूसरे की तारीफ की. इस दौरान उम्मीद की गयी कि दोनों देशों के नेताओं की मुलाक़ात के बाद सीमा पर जारी गतिरोध समाप्त होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
दोनों देशों के बीच पिछले एक महीने से जारी गतिरोध के दौरान काफी कुछ हुआ, जिस पर चीन और भारत दोनों की नज़र है. वन बेल्ट-वन रोड अभियान में भारत का शामिल न होना, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका यात्रा, उसके बाद दोनों देशों की ओर से जारी बयानबाज़ी के बीच प्रधानमंत्री मोदी की इस्रायल यात्रा और फिर जर्मनी में दोनों देशो के नेताओं की बातचीत. भारत, अमरीका और जापान की नौसेनाओं के बीच जारी मालाबार युद्धाभ्यास भी चीन की नज़रों में चुभ रहा है. इस युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के भी शामिल होने की ख़बरें थी, लेकिन बाद में ऑस्ट्रेलिया ने इसमें भाग लेने से इंकार कर दिया. यह भी चीन की चिंता का सबब बना.
सीमा विवाद के अलावा भारत की अन्य चिंताओं का समाधान ढूंढने की कोशिश चीन की ओर से शायद ही की गई हो. समय-समय पर चीन ने भारत विरोधी रुख दिखाया है. चाहे वो सयुंक्त राष्ट्र में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित कराने की राह में रुकावट खड़ी करना हो या फिर परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह(एनएसजी) में भी भारत की सदस्यता का करने का विरोध हो. हर बार चीन ने इन मामलों में भारत का समर्थन नहीं किया.
पिछले माह प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी अपनी अमरीका यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मिले. भारत और अमरीका की दोस्ती को शुरू से ही चीन संदेह की नज़र से देखता रहा है और यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका यात्रा के दौरान भी दिखा, जब चीन की सरकारी मीडिया ने कहा है कि अमरीका से मिलकर चीन के मुकाबले खड़े होने की भारत की कोशिश उसके हित में नहीं है। साथ ही चीन ने इसके ‘विनाशकारी परिणाम’ की धमकी भी दी. चीन के सरकारी समाचारपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने लिखा कि चीन के बढ़ते प्रभाव से अमरीका और भारत दोनों ही देश चिंतित हैं। अखबार आगे ने कहा कि भारत अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को छोड़ते हुए चीन का मुकाबला करने के लिए अमरीका का ‘मोहरा’ बन रहा है.
इसके बाद दोनों देशों की ओर से बयानबाज़ी का दौर शुरू हो गया.
चीन ने भारत को 1962 के युद्ध से सबक लेने की सलाह दे दी. इस पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की और रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने चीन को जवाब देते हुए कहा कि 2017 का भारत 1962 से अलग है. रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि सिक्किम सेक्टर में भारतीय और चीनी सेना के बीच तनातनी की शुरूआत चीन की ओर से हुई है.
आख़िर क्या है विवाद
सिक्किम की सीमा पर डोकलाम इलाका इस बार विवाद का केंद्र बना हैं. यहां चीन, भारत और भूटान की सीमाएं मिलती है और इसी इलाके में चीन सड़क का निर्माण कर रहा था. भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं और भारत, भूटान के दावे का समर्थन करता है. भारत ने चीन को सड़क का निमार्ण रोकने को कहा. सड़क बनने से रोके जाने के बाद चीनी सेना ने भारत के दो बंकर नष्ट कर दिए और इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया.
यहां भारत का कहना है कि इस सड़क बनने से भारत के पूर्वोतर राज्यों को देश से जोड़ने वाले 20 किलोमीटर के गलियारे पर चीन की पहुंच बढ़ जाएगी. ये इलाका सामरिक रूप से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और यह बात चीन बहुत अच्छी तरह से जानता और समझता है.
इधर भूटान ने भारत की मदद से चीन के सामने अपनी चिंता ज़ाहिर की क्योंकि चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंध नहीं है।
उधर चीन ने भारत पर दबाव बढ़ाने के मद्देनज़र घोषणा कर दी कि मौजूदा गतिरोध ख़त्म होने के बाद ही कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए नाथू-ला दर्रे का रास्ता खोला जाएगा।
चीन की विस्तारवादी नीति
यहां यह भी समझना बेहद ज़रूरी है कि चीन की विस्तारवादी नीति पर समूचे विश्व की नज़र है. चीन की विस्तारवादी सोच और नीति की वजह से उसके पड़ोसी मुल्कों के साथ संबंध सहज नहीं हैं. इसमें एक अपवाद पाकिस्तान ज़रूर है. पाकिस्तान के साथ चीन की दोस्ती की मुख्य वजह भारत के साथ उसके संबंध हैं.
अपनी विस्तारवादी सोच के साथ दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों के निर्माण कर चीन इस क्षेत्र पर अपना दावा जता रहा है. पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में फिलिपींस के हाथों चीन को मुंह की खानी पड़ी थी. वर्ष 2013 में दक्षिण चीन सागर क्षेत्र को लेकर फिलिपींस ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चीन के खिलाफ़ मामला दर्ज कराया था. जिसके बाद न्यायालय ने दक्षिण चीन सागर में चीन का नाइन डैश लाइन के अंतर्गत आने वाले समुद्री क्षेत्र पर कानूनी दावा नहीं माना था.
चीन की मंशा हमेशा से ही छोटे पड़ोसी देशों पर दबाव बनाकर, उनसे अपनी बात मनवाने की रही है. सीमा विवाद से जुड़े मुद्दों में पिछले कुछ समय से चीन यही करता रहा है और इस बार भूटान के इस इलाके पर चीन की नज़र है.
समुद्री सीमा से जुड़े विवाद चीन के लिए सबसे ज्यादा चिंता का विषय हैं, क्योंकि समुद्री सीमा पर स्थित कई देशों से चीन को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया और ताइवान जैसे दक्षिण-पूर्वी देशों ने चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
एक नज़र दोनों देशों के बीच व्यापार पर भी
भारत और चीन के बीच आधिकारिक रूप से व्यापारिक संबंध 1978 में दोबारा शुरू हुए. वर्ष 1984 में दोनों देशों ने एक-दूसरे को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया. वर्ष 2000 में दोनों देशों के बीच व्यापार सिर्फ 300 करोड़ डॉलर था जो कि वर्ष 2011 में बढ़कर 73 अरब 90 करोड़ डॉलर पहुंच गया.
वर्ष 2015-16 के दौरान भारत को चीन से 46 करोड़ 14 लाख डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ.
चीन के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, चीन ने इस वर्ष जनवरी से मार्च के दौरान भारत में 7.3 करोड़ डॉलर का निवेश किया जबकि भारत ने इसी अवधि में चीन में 70.5 करोड़ डॉलर का निवेश किया.
2017 के पहले चार महीनों में भारत-चीन के व्यापार में 19.92% की वृद्धि हुई और यह 26.02 अरब डॉलर पर पहुँच गया. चीन में भारत का निर्यात 45.29% बढ़कर 5.57 अरब डॉलर रहा, जबकि चीन से भारत का आयात 14.48% की वृद्धि के साथ 20.45 अरब डॉलर पर पहुंच गया.
दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि होने बाद भारतीय कंपनियों ने चीन में निवेश किया है वहीं चीन की सौ से भी ज़्यादा कंपनियों ने भारत में अपने कार्यालय खोले हैं. दोनों देश वर्ष 2005 से समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने के बाद से ही हर वर्ष भारत-चीन वित्तीय संवाद का आयोजन करते हैं.
फ़िलहाल चीन के लिए यह संभव नहीं है कि वो इस मुद्दे का समाधान करने के बजाए भारत पर हमला करे. यहां दोनों ही देश इंतज़ार करो और देखो की नीति पर चल रहे हैं. कौन अपने क़दम पहले वापिस खींचेगा शायद इसी बात पर दोनों की नज़र है. समय की मांग भी यही है कि इस गतिरोध को जल्द से जल्द दूर किया जाये. वैसे भी विश्व के दूसरे देश यह कभी नहीं चाहेंगे कि एशिया के ऐसे दो बड़े देशों के बीच लड़ाई के आसार भी पैदा हो, जिन्होंने समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था को संभाला है.
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